किसी वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा या सर्वनाम पदों का उस वाक्य की क्रिया से जो संबंध होता है, उसे कारक कहते हैं! संज्ञाओं का क्रिया से संबंध बताने के लिए कुछ चिह्नों; जैसे – ने, को, से, के लिए, में आदि का प्रयोग हुआ है, इन्हें परसर्ग (कारक-चिह्न) या विभक्ति चिह्न भी कहा जाता है!
कभी कभी कुछ वाक्यों में कुछ शब्दों के साथ परसर्ग का प्रयोग नहीं होता है; जैसे – मनोज दूध पीता है! इसमें मनोज और दूध के बाद किसी परसर्ग का प्रयोग नहीं हुआ है! ऐसे वाक्यों में शब्द क्रम या अर्थ के आधार पर क्रिया से संज्ञा का संबंध स्पष्ट होता है!
कारक के भेद (Kinds of Case) – कारक के छः भेद माने जाते हैं –
- कर्ता – क्रिया को करने वाला! विभक्ति चिह्न – ने, शून्य!
- कर्म – जिस पर क्रिया का प्रभाव या फल पड़े! विभक्ति चिह्न – को!
- करण – जिस साधन से क्रिया हो! विभक्ति चिह्न – से, द्वारा!
- संप्रदान – जिसके लिए क्रिया की जाए! विभक्ति चिह्न – को, के लिए!
- अपादान – जिससे अलग होने या निकलने का बोध हो! विभक्ति चिह्न – से (अलग होना)!
- अधिकरण – क्रिया के स्थान, समय आदि का आधार! विभक्ति चिह्न – में, पर!
लेकिन कारक के दो अन्य भेद भी माने जाते हैं, किंतु इन पर विवाद है, क्योंकि इनका प्रत्यक्ष संबंध क्रिया से नहीं होता!
7. संबंध – क्रिया से भिन्न किसी अन्य पद से संबंध सूचित करने वाला! विभक्ति चिह्न – का, के, की!
8. संबोधन – जिस संज्ञा को पुकारा जाए! विभक्ति चिह्न – हे, अरे आदि!
१. कर्ता कारक (Nominative Case) – जो क्रिया करता है उसे कर्ता कारक कहते है! कर्ता संज्ञा या सर्वनाम होते हैं! इसकी विभक्ति ‘ने’ है! जब क्रिया अकर्मक होती है तो उसके साथ विभक्ति चिह्न नहीं लगता! ‘ने’ विभक्ति चिह्न सकर्मक क्रिया के भूतकाल में लगता है! जैसे – मोहन ने गुब्बारे ख़रीदे! रश्मि ने खाना खाया! कर्मवाच्य और भाववाच्य में कर्ता के साथ ‘से’ विभक्ति चिह्न लगता है – रमेश से पत्र नहीं लिखा जाता!
२. कर्मकारक (Objective Case) – वाक्य में जब क्रिया का फल कर्ता पर न पड़कर किसी अन्य संज्ञा या सर्वनाम पर पड़ता है, उसे कर्मकारक कहते हैं! इसका विभक्ति चिह्न ‘को’ होता है! यह विभक्ति चिह्न क्रियाओं के साथ ही लगता है! ‘को’ का प्रमुखतः प्रयोग प्राणिवाचक संज्ञाओं के साथ किया जाता है! जैसे – किरण ने सिमरन को पहुँचाया! कई बार अप्राणिवाचक कर्म के साथ ‘को’ विभक्ति चिन्ह आता है; जैसे – दरवाजे को बंद कर दो! यदि किसी वाक्य में दो कर्म आए तो ‘को विभक्ति चिह्न का प्रयोग गौण कर्म के साथ होता है; जैसे – रमेश ने सुरेश को थप्पड़ मारा!
३. करण कारक (Instrumental Case) – संज्ञा या सर्वनाम के जो रूप क्रिया होने के साधन या माध्यम होते हैं उन्हें करण कारक कहते हैं! इसकी विभक्ति चिह्न ‘ से, के द्वारा, द्वारा’ होता है; जैसे – कार पेट्रोल से चलती है!
४. संप्रदान कारक (Dative Case) – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी को देने या किसी के लिए कुछ कार्य करने का पता चलता है, उसे संप्रदान कारक कहते हैं! इसकी विभक्ति चिह्न ‘को, के लिए’ होता है! संप्रदान का शाब्दिक अर्थ देना होता है! जैसे – अधयापक ने गिरिजा को सत्तर अंक दिए!
५. अपादान कारक (Ablative Case) – संज्ञा के जिस रूप से अलग होने का बोध होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं! इसकी विभक्ति चिह्न ‘से’ है! अपादान कारक से अलग होने, तुलना करने, निकलने, डरने, लज्जित होने और दूरी होने का बोध होता है! जैसे – पत्ता पेड़ से गिर पड़ा! गणेश आगरा से आ गया!
६. संबंध कारक (Genetative Case) – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से इनमें संबंध प्रकट होता है, उसे संबंध कारक कहते हैं! इसके विभक्ति चिह्न ‘का, की, के, रा, ऋ, रे’ आदि होते हैं! जैसे – यह पुस्तक तुम्हारी है! सुषमा सोमी की मौसी है!
७. अधिकरण कारक (Locative Case) – संज्ञा और सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के समय, स्थान, आधार आदि का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं! इसके विभक्ति चिह्न ‘में, पर’ हैं! जैसे – आकाश में जहाज उड़ रहा है! दीवार पर कैलेंडर लटका है!
८. संबोधन कारक (Vocative Case) – जिस संज्ञा और सर्वनाम का प्रयोग संबोधन के रूप में किया जाता है, उसे संबोधन कारक कहते हैं! इसमें संज्ञा और सर्वनाम से पहले ‘अरे, अरी, रे, हे’ आदि शब्द लगाते हैं! इनके आगे विस्मादिबोधक चिह्न ( ! ) का प्रयोग किया जाता है! जैसे – हे राम! जरा सी लड़की ने नाम में दम कर दिया!
कर्मकारक और संप्रदान कारक में अंतर – कर्म कारक में क्रिया का फल कर्म पर पड़ता है! संप्रदान कारक में कर्ता देने का काम करता है! दोनों कारकों में ‘को’ विभक्ति के कारण भूल होने की संभावना रहती है! कर्मकारक में देने का काम नहीं होता! कर्मकारक में किसी के लिए कार्य नहीं किया जाता, संप्रदान कारक में किया जाता है!
करण कारक और अपादान कारक में अंतर – करण द्वारा कर्ता के कार्य करने के माध्यम का बोध होता है! अपादान कारक द्वारा ऐसा नहीं होता है! करण कारक से अलग होने या तुलना का बोध नहीं होता, अपादान कारक से होता है!
संज्ञा का रूपांतरण (रूप रचना) (Transformation of Noun) – संज्ञा शब्दों का रूपांतरण लिंग, वचन और कारक की दृष्टि से होता है! जैसे – लड़का पढ़ रहा है! लड़के पढ़ रहे हैं! लड़की तेज दौड़ी! लड़कियाँ तेज दौड़ीं! आदि!
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