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Home सामाजिक

मंदिरों में चुपचाप विराजमान पत्थरों के देवता से इतना डरते क्यों हैं लोग?

by Pallavi Mishra
July 30, 2022
in सामाजिक
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साबरीमाल मुस्कुराते रहेंगे!

इतना डरते क्यों हैं लोग, मंदिरों में स्थापित पत्थरों के देवता और उनके अलिखित सम्राज्य से? जबकि वह चुप है, वह न तो दिखता है, और न ही बोलता है, फिर उसके सम्राज्य को हिलाने की आवश्यकता ही क्यों पड़ती है?

महज़ इसलिए कि उसका अलिखित कानून हर लिखित कानूनी व्याख्या पर भारी पड़ता है! यह अलिखित कानून समग्र दिखता है, जिसके पीछे जनमानस न कोई शिकायत दर्ज़ करता है और न उसे मानने से मना करता है!

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देवत्व व् असुरत्व के द्वंद में प्रकृति, अपने पुरुषोत्तम के अवतरण की पृष्ठभूमि रच रही है

भाई भाई को लूटे, सर्वत्र विघटन के पांव, बन्धुवर अब तो आ जा गांव!

स्वामी विवेकानंद जी के ये अनमोल विचार युवाओं को हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे

एक तरफ़ उस सम्राज्य को स्थापित रखने को सामूहिक चेतना है और दूसरी ओर उसे झुठला देने की आस्था, जो एक क्षुद्र प्रतिक्रिया से ज़्यादा कुछ भी नहीं! यहाँ विरोध सबरीमाला से ज़्यादा इस बात का है कि अथाह जनसमूह कुछ बेतुका कहता क्यों नहीं, करता क्यों नहीं, मानता क्यों जाता है हर अलिखित दस्तावेज को!

दरअसल यह सामाजिक उर्ज़ा किसी सैनिटरी पैड से ख़त्म हो जाने वाली चीज़ नहीं है, न यह ऊर्ज़ा ख़त्म होगी, न उसके दस्तूर पर कोई फ़र्क ही पड़ेगा! हाँ, यह वैचारिक हमला पत्थरों की दीवारों, दरवाज़ों से टकराकर लौट ज़रूर जाएगा और सबरीमाल फिर भी मुस्कुराते रहेंगे!

इस प्रतिक्रियात्मक रवैया के बाद भी ऐसा बिल्कुल नहीं होगा कि सबरीमाल की पूजा रुक जाएगी या बंद हो जाएगी, वह तो होती आई है, न जाने किस काल से, होती ही रहेगी भविष्य के आने वाले कई कालों तक!

अगर इस तरह की प्रतिक्रियाओं पर आस्थाओं की नदियां या समुद्र अपना मार्ग बदल लेते या बहना रोक लेते, तो यह समूची दुनिया शायद बहुत पहले ही मृत महासागर बन चुकी होती, जहाँ पत्थरों के देवता मानवीय संवेदनाओं को आकार देने की वज़ह नहीं बनते। Save Sabarimala

Tags: Save Sabarimala
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