धर्म की स्वतंत्रता की बात तो सिर्फ बहाना है, असल में तो धर्मांतरण की स्वतंत्रता पाना है! अक्सर आपने देखा होगा की जो लोग धर्म की स्वतंत्रता के ऊपर बड़े बोल बोलते है, अभियान चलाते हैं; हकीकत में वो Conversion के षड्यंत्र में संलिप्त होते हैं! जो बुद्धिजीवी वर्ग, उपदेश देकर लोगों को बेवकूफ बनाता है की धर्म व्यक्तिगत विषय है! उन्हीं में से कुछ, पूरी दुनियां को इसाई तो कुछ इस्लामिक स्टेट बनाने के पुरजोर प्रयास में लगे हुए हैं! अब समझ ये नहीं आता की फिर ये उपदेश किसे बेवकूफ बनाने के लिए है! या फिर धर्म अब व्यक्तिगत विषय नहीं बल्कि सामाजिक विषय बन गया है?
अभी एक खबर आपने पढ़ी होगी की अंडमान के सेंटिनल द्वीप में सेंटिनल के मूल वासियों को जीसस का संदेश देने गए एक अमेरिकी नागरिक जॉन एलन चाउ की हत्या हो गई! फिर अचानक से ये खबर गायब हो जाती है और फिर पैसे की भूखी मीडिया संसथान द्वारा तरह तरह के मगढ़ंत अफवाहें फ़ैलाने का काम शुरू हो गया! कुल मिलाकर Chow और मिशनरीज के धर्मांतरण के षड्यंत्र पर पर्दा डालने का प्रयास शुरू हो गया! उसे एक बेकसूर और निर्दोष दिखाने के प्रयास होने लगे! यानि हकीकत से बिलकुल उलट दृश्य दिखाने के प्रयास होने लगे!
जबकि हकीकत ये है की Chow एक इसाई मिशनरी का प्रचारक था और मिशनरी के धर्मांतरण मिशन को अंजाम देने और सेंटिनल के मूल निवासियों को उनकी जड़ों से काटकर जीसस के संदेश देने के बहाने इसाई बनाने का प्रयास कर रहा था! भले ही भारत की मीडिया संसथान इस षड्यंत्र पर पर्दा डालने का प्रयास कर रही है लेकिन इंटरनेशनल क्रिश्चियन कन्सर्न नामक इसाई संस्था ने उसे अपने प्रचारक के रूप में चिन्हित किया है! फिर क्यों भारतीय मीडिया इस सच को छुपाने में लगी आप सब अच्छे से जानते हैं!
मौत से पहले चाउ ने अपने माता-पिता के नाम छोड़े पत्र में लिखा, ‘आप लोगों को लगता होगा कि मैं सनक गया हूं, किंतु उन्हें (सेंटिनल द्वीपवासी) जीसस के बारे में बताना आवश्यक है! उन लोगों से मेरा मिलना व्यर्थ नहीं है! मैं चाहता हूं कि वे लोग भी अपनी भाषा में प्रभु (जीसस) की आराधना करें! यदि मेरी मौत हो जाए तो आप इन लोगों या प्रभु से नाराज मत होना! मैं आप सभी से प्यार करता हूं और मेरी प्रार्थना है कि आप दुनिया में ईसा मसीह से अधिक किसी और से प्यार न करें!’ 13 पन्नों की यह चिट्ठी चाउ ने अपनी मदद करने वाले मछुआरों को सौंपी थी!
जांच में स्पष्ट हुआ कि चाउ ने हर एक भारतीय नियम, कानून और अधिनियम की अवहेलना की! ऐसा नहीं है कि चाउ पहली बार अंडमान निकोबार आया था! वह सितंबर 2016 से लेकर अपनी मौत से पहले तीन बार पोर्ट ब्लेयर आ चुका था! अंडमान-निकोबार के कई क्षेत्र वर्षों से आदिवासी जनजाति संरक्षण अधिनियम, 1956 और भारतीय वन अधिनियम, 1927 के अंतर्गत प्रतिबंधित है! विदेशी पर्यटकों को इन क्षेत्रों में जाने के लिए शीर्ष प्राधिकरण से ‘रिस्ट्रिक्टेड एरिया परमिट’ यानी आरएपी लेना होता है, किंतु इस वर्ष जून में गृह मंत्रालय द्वारा आरएपी को उत्तरी सेंटिनल सहित 28 अन्य द्वीपों से हटा लिया गया! इसके बाद विदेशी पर्यटक किसी आधिकारिक स्वीकृति के लिए बाध्य तो नहीं रहे, किंतु उन्हें क्षेत्रीय रजिस्ट्रार अधिकारी को अपने ठहरने के बारे में जानकारी देने का प्रावधान अनिवार्य रखा गया! चाउ ने इन सभी की अनदेखी करते हुए स्थानीय मछुआरों को 25 हजार रुपये की घूस दी और एक नाव की मदद से 14 नवंबर की रात प्रतिबंधित क्षेत्र की ओर निकल गया!
क्या इन सब बातों को जानने के बाद नहीं लगता की चाउ भी उसी गुप्त एजेंडे का हिस्सा था जिसे देश में अधिकांश चर्च और ईसाई मिशनरियां अपनी विकृत ‘सेवा’ के जरिए फैलाते हैं, और भारतीय समाज के भीतर मतांतरण का खेल खेलते हैं? आज भारत के कई क्षेत्रों में खुलेआम कथित आत्मा का कुत्सित व्यापार वामपंथियों, स्वघोषित सेक्युलरिस्टों, विदेशी टुकड़ों पर पलने वाले स्वयंसेवी संगठनों और दलाल मीडिया संस्थानों की सहायता से धड़ल्ले से चल रहा है!
जरा सोचिए की स्वतंत्रता से पूर्व जो नगालैंड और मिजोरम आदिवासी बहुल क्षेत्र थे वो आज इसाई बहुल क्षेत्र कैसे बन गया? जागरण में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक ‘1941 में जिस नगालैंड की कुल आबादी में गिनती के केवल नौ ईसाई (लगभग शून्य प्रतिशत) थे और मिजोरम में ईसाइयों की संख्या केवल .03 प्रतिशत थी! वहां 1951 में बढ़कर क्रमश: 46 और 90 प्रतिशत इसाई कैसे हो गए? और अब 2011 की जनगणना के अनुसार, दोनों प्रांतों की कुल जनसंख्या में ईसाई क्रमश: 88 और 87 प्रतिशत है! मेघालय की भी यही स्थिति है! अब इतनी वृहद मात्रा में मतांतरण के लिए क्या-क्या हथकंडे अपनाए गए होंगे, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है!’
अगर सच में धर्म व्यक्तिगत विषय है तो फिर क्यों बड़े बड़े मिशनरीज धर्मांतरण के षड्यंत्र में लगी रहती है? धर्मांतरण को अंजाम देने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहती है? रुपया पैसे के लालच, इलाज के बहाने और न जाने कितने ही छद्म रूप धरकर धर्मांतरण के षड्यंत्र को अंजाम देती है? क्यों तरह तरह के जिहादी और जबरदस्ती के तरीकों से धर्मांतरण को अंजाम दिया जाता है? क्यों सिर्फ जीसस को सत्य और बाकि को असत्य माना जाता है! क्यों सिर्फ मुसलमान को सही और बाकि को काफिर माना जाता है? क्यों बेशुमार पैसे का लालच देकर बड़े बड़े प्रभावी लोगों, संस्थानों और मीडिया ग्रुप्स को भी इस षड्यंत्र में शामिल किया जाता है ताकि ये धर्मांतरण का षड्यंत्र बड़े आराम से सफल अंजाम प्राप्त करे? फिर से कहूँगा की धर्म व्यक्तिगत है या फिर धर्म की स्वंत्रता तो सिर्फ बहाना, असल मकसद तो धर्मांतरण की स्वतंत्रता पाना है!